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Wednesday, 14 March 2018

5. फ़कीर!!


 फ़कीर


Photo Credit :- Prafful Bhargava 

(प्रफुल्ल भार्गव)


साहिर लुधियानवी का एक शेर है
,

" मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया,                        हर फिक्र को धुऐं में उङाता चला गया॥ "

 २०१६ (2016) सिंहस्थ ऐसे ही साधुओं का मिलन समारोह था, बाबा महाकाल की नगरी अवंतिका (उज्जैन) के हर  शख़्स के अंदर इस शेर को आप देख सकते थे, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का यही आलम था कि सब अपनी फिक्रों को उङा चुके थे, और जब नगरी में  एकत्रित हुए नागा साधुओं पर ध्यान जाता है तब शायद कोशिश की जा सकती है वैराग्य को समझने की।
दरअसल, फिक्र को धुऐं में उङाने को ही वैराग्य की प्रारम्भिक अवस्था कहा जा सकता है, जिसे आज की आम भाषा में मोह माया से दूर होना भी कहते हैं। 

Photo Credit :- Prafful Bhargava (प्रफुल्ल भार्गव)



भस्म में रमित सम्पूर्ण तन,
ध्यान में संग्रहित सब मन,
रुद्राक्ष, दंड, भस्म, भगवा,
नागाओं के आभुषण धन!!
 









कुछ ऐसी वेश-भूषा वाले नागा बाबा, आम आदमी और उसकी जैसा देश वैसा भेष वाली सोच से बिल्कुल परे हैं, वो जहाँ मिलेंगे इसी अवस्था में मिलेंगे, क्योंकि यह अवस्था उन्हें गहन तपस्या के बाद हासिल हुई है। ये आप उस तरीके से समझिये जब आपको दिन भर मेहनत करने के बाद मेहनताना मिले और आपको कोई यह बोले कि उस मेहनताने को वहीं छोङ दो, तो भले ही वह एक रुपया हो, यदि आप खुद्दार हैं तो अपनी मेहनत से कमाया एक रुपया भी लेकर ही आयेंगे।

Photo Credit :- Prafful Bhargava 

(प्रफुल्ल भार्गव)

और खुद्दारी एक बहुत अहम बात है जो आपको नागा बाबाओं में मिलेगीये दिन-रात ध्यानहवनतपस्याकरने के बावजूद भी अपना पेट भरने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाते नहीं मिलेंगेइन्हें खुद पर और उपरवाले पर उतना ही भरोसा है जितना मर्द सिनेमा में आमिताभ बच्चन को होता है और वो कहते हैं कि,
उपरवाला भूखा उठाता जरूर है, भूखा सुलाता नहीं”
और ये तो मैं भी मानता हूँ कि जिसका कोई नहीं उसका खुदा है। और इन बाबाओं का तो सिर्फ वही है क्योंकि शायद आपको नहीं पता हो नागा बनने की प्रक्रिया में एक पद पिंडदान का भी होता है, सही समझे आप !! बाबा खुद का पिंडदान करते हैं और ये आपके, मेरे और इस पूरी दुनिया के लिये म्रत हो जाते हैं।

Photo Credit :- Prafful Bhargava 

(प्रफुल्ल भार्गव)

हाँ और भी बहुत सारी परीक्षाएं होती है जैसे सर्वप्रथम उस व्यक्ति के बारे में एक एक जानकारी की जाती है, वह किस परिवार से है, पारिवारिक स्तिथी कैसी है, जिसमें सबसे बङा प्रश्न होता है कि वो बाबा क्यों बनना चाहता है, और वह इस लायक है या नहीं और इसमें सफल होने के बाद ब्रह्मचर्य की परिक्षा जहाँ ६(6) माह से १२(12) साल तक लग जाते हैं, और इसमें उत्तीर्ण होने के बाद बाबाओं को महापुरुष बनाया जाता है, जहाँ उनके पांच गुरु बनाये जाते हैं जिन्हें पंच पर्मेश्वर भी कहा जाता है। इसमें आखिरी परिक्षा होती है अंग भंग की जिसे सबसे विषम कहा गया है और उसके बाद एक व्यक्ति असल नागा बाबा बनता है।

मुझे नागा बाबा ही असली फ़कीर मालूम होते हैं, और शायद इतना सब कुछ जानने के बाद आप भी नागा बाबाओं को खुद्दार फ़कीर कहना शुरू कर दें!! मैं सोचता हूँ कि ये हर व्यक्तित्व कितनी ताकत रखता है, मेहनत, द्ढनिश्चयता, संकल्पनिष्ठता, एकाग्रता, ईमानदारी और न जाने कितनी ही खूबी ये अपने अंदर रखे हुए हैं, ऐसे प्रतिद्वंदिता के ज़माने में जहाँ आगे निकलने के लिये आदम किसी भी रिश्ते या व्यक्ति को खत्म करने में तनिक नहीं सोचता, अगर यह बाबा बनने वाले प्रतिभाशाली लोग इस ज़माने में शामिल हो गये तो आपका और हमारा क्या होगा ??

इस प्रश्न का आपका और मेरा जवाब नोमान शौक़ के इक शेर से लिखता हूँ कि,

“ फ़कीर लोग रहे अपने हाल में मस्त,
नहीं तो शहर का नक्शा बदल चुका होता॥

Photo Credit :- Prafful Bhargava 

(प्रफुल्ल भार्गव)


इन सभी प्रतिभा के धनियों को मेरा शत् शत् बार प्रणाम!!!!

‌‌‌‌  - प्रद्युम्न पालिवाल

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Monday, 12 March 2018

4. कलम का जादूगर!!

कलम का जादूगर





बिहार के मुज़्ज़फरपुर जिले के बेनिपुर गांव में रहा करते थे एक विशिष्ट शैलीकार जिन्हें "कलम का जादूगर" कहा जाता है। जन्म हुआ सन् १८९९ (1899) में और माता पिता का साया बचपन में ही सर से उठ गया। दसवीं के उपरांत सन् १९२० (1920) में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन से सक्रिय रूप से जुङ गए। कई बार जेल भी गए। सन् १९६८ (1968) में उनका देहावसान हो गया।


ऐसा प्रतिभाशाली पत्रकार एवम साहित्यकार जिसकी रचनाएं १५ 
(15‌) वर्ष की उम्र से प्रकाशित होने लगीं। अनेक दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन करने वाले   “श्री रामव्रक्ष बेनीपुरी जी


Photo Credit :- Prafful Bhargava 

(प्रफुल्ल भार्गव)



यह लेख समर्पित है स्व. “श्री रामव्रक्ष बेनीपुरी जी को, और दरअसल उपर दिए गए चित्र को देख मुझे बेनीपुरी जी की एक कहानी याद आ गई जिसका नाम है बालगोबिन भगत

पूरी कहानी तो काफी लम्बी हो जाएगी सो मैं कुछ काम की बात बताना चाहुंगा। कहानी के मुख्य किरदार, भगत जी एक मस्त मौला, साठ साल से उपर के, खेतीबारी वाले बिल्कुल फक्कङ व्यक्ति जो ग्रहस्थ होते हुए भी एक साधू हैं और जिनकी दिनचर्या है संगीत!!
जिन्हें हर गांव वाला उनके गीतों और भजनों के कारण जानता था, कबीर को 'साहब' कहने वाला फकीर जो हर मौसम के अनुरूप गीत और सुबह शाम साहब के दोहे दोहराते थे!!

एक दिन अचानक भगत का बेटा मर जाता है, पर आश्चर्य की बात यह कि भगत उस दिन भी उसी मस्ती से भजन गा रहे हैं। उनकी पुत्रवधू, जिसके आंसू नहीं रुक रहे हैं, जिसे सारी मोहल्ले की औरतें शांत कराने की कोशिश कर रही हैं। उसे भगत बाबा खुशी मनाने को कह रहे हैं, उनका कहना है कि ये वक्त उत्साह का है, आत्मा का परमात्मा से मिलन हो रहा है!! और तब मैं समझा कि बाबा भगत दुख में भी खुशी मनाने वालों में से हैं।
और बाबा का देहावसान भी उनकी इच्छा स्वरूप ही हुआ, किसी को नहीं पता की यह कैसे हुआ बस एक दिन सुबह सुबह वो दोहे सुनाई नहीं पङे और जब लोगों ने जाकर देखा तो पता चला की भगत बाबा नहीं रहे!! मैं मानता हूँ वो जहाँ भी गये होंगे वहाँ रोते को हंसा देंगे।

लेखक बेनिपुरी जी की इस कहानी का यह संदेश हम सब तक पहुंचना जरूरी है कि -

"जो भी हो हमेशा एक से रहो और कठिन समय में खुश रहो और सब खुद-ब-खुद सही हो जाएगा, दरअसल इसी का नाम तो ज़िंदगी है!!"


-प्रद्युम्न पालीवाल  

यह कहानी आज भी आपको एन.सी.ई.आर.टी. की दसवीं की किताब पर मिल जाएगी यदि आप पूरी कहानी का पठन करना चाहें तो!! और एक लिंक उस कहानी के लिये यह है:-

बालगोबिन भगत