"दीन बंधु दीनानाथ, मेरी डोरी तेरे हाथ"
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Photo Credit :- Prafful Bhargava(प्रफुल्ल भार्गव) |
"दीन बंधु दीनानाथ, मेरी डोरी तेरे हाथ"
भगवान को प्राय: दीनबंधु और दीनानाथ के नाम से पुकारा गया है, यहाँ दीन से तात्पर्य दुखी होने का नहीं है, अपितु दीन का अर्थ है शरीर, मन, और इंद्रियों के पार चले जाना। तो ऐसे व्यक्ति के जीवन की डोरी भगवान के हाथ में है।दादीजी को मैंने अक्सर यही पंक्ति दोहराते हुए सुना है और उनके बताये गये भावार्थ द्वारा इस पंक्ति के बारे में मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि हम सभी को वो (कथित भगवान) अपनी उंगलियों पर एक कठपुतली की तरह नचाता है।लेकिन, मनुष्य को अपने स्वभाव के अनुसार इशारों पर नचाना पसंद है न कि नाचना, और फिर शायद मनुष्यों ने ऐसे ही कुछ कारणों के चलते राजा और प्रजा वाली प्रणाली की शुरुआत की होगी, और जब उससे भी काम न चला तो शायद वर्ण व्यवस्था का आविष्कार हुआ होगा, और वर्ण व्यवस्था के बारे में सिर्फ यह कहुंगा कि,
“जैसा कर्म करोगे, वैसा वर्ण धरोगे”।
चुंकि हमारे अंदर इतना धैर्य नहीं कि हमारे द्वारा बनाई गयी कठपुतली हमारे सामने मुहँ भी खोले क्योंकि जब-जब प्रजा की आवाज़ उठी तब-तब राजा का आदेश हुआ कि ये जुबानें काट दी जायें, सर को धङ से अलग कर दिया जाये, और सारी आवज़ें दबा दी गयीं।पर उस उपरवाले की धैर्य की दाद देनी पङेगी जिसकी बनाई हुई कठपुतलीयाँ उसी के नाम पर आपस में लङ-मर रही हैं, जिसकी पूजा कर रही हैं उसी को गालियाँ दे रही हैं, पर वो न तो कोई धमकी देता है न हि कोई आदेश और ये तो वो खुद हि जाने कि ये उसकी कमज़ोरी है या उसकी ताकत!!हालाँकि कुछ समझदार कठपुतलियों ने ऐसी कठपुतलियाँ बनाई जो सिर्फ काम करती हैं जिन्हें अच्छा या बुरा नहीं पता जिस कारण वे बगावत भी नहीं करतीं, करती हैं तो सिर्फ दिये हुए आदेश का पालन और ऐसी कठपुतलियों को नाम दिया गया है रोबोट!!जबकी दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले रजनीकांत जी ने अपने एक सिनेमा में रोबोट का निर्माण करते समय उसमें भावनाओं वाली चिप लगा दी और परिणामस्वरूप रोबोट का विद्रोह हुआ जिसपर पूरा सिनेमा बना दिया है। क्या पता उस अकेले दूरदर्शी ने भविष्य देख लिया हो!!जिस तरह मैंने देख लिया था यह भविष्य अपने बचपन में, दरअसल दादीजी जिन पंक्तियों को हमसे दोहराने की बात करती थीं, उसे हम नसमझी में ही सही पर यूँ दोहराते थे मानो हमने आने वाला कल देख रखा है :-
"दीन बंधु दीनानाथ, तेरी डोरी मेरे हाथ"
धन्य हो दीनानाथ, अब तो कुछ बोलो!!