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Friday, 9 March 2018

3. "दीन बंधु दीनानाथ, मेरी डोरी तेरे हाथ"


"दीन बंधु दीनानाथ, मेरी डोरी तेरे हाथ"


Photo Credit :- Prafful Bhargava 

(प्रफुल्ल भार्गव)


"दीन बंधु दीनानाथमेरी डोरी तेरे हाथ"



भगवान को प्राय: दीनबंधु और दीनानाथ के नाम से पुकारा गया है, यहाँ दीन से तात्पर्य दुखी होने का नहीं है, अपितु दीन का अर्थ है शरीर, मन, और इंद्रियों के पार चले जाना। तो ऐसे व्यक्ति के जीवन की डोरी भगवान के हाथ में है। 
दादीजी को मैंने अक्सर यही पंक्ति दोहराते हुए सुना है और उनके बताये गये भावार्थ द्वारा इस पंक्ति के बारे में मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि हम सभी को वो (कथित भगवान) अपनी उंगलियों पर एक कठपुतली की तरह नचाता है। 
लेकिन, मनुष्य को अपने स्वभाव के अनुसार इशारों पर नचाना पसंद है न कि नाचना, और फिर शायद मनुष्यों ने ऐसे ही कुछ कारणों के चलते राजा और प्रजा वाली प्रणाली की शुरुआत की होगी, और जब उससे भी काम न चला तो शायद वर्ण व्यवस्था का आविष्कार हुआ होगा, और वर्ण व्यवस्था के बारे में सिर्फ यह कहुंगा कि, 
“जैसा कर्म करोगे, वैसा वर्ण धरोगे”


चुंकि हमारे अंदर इतना धैर्य नहीं कि हमारे द्वारा बनाई गयी कठपुतली हमारे सामने मुहँ भी खोले क्योंकि जब-जब प्रजा की आवाज़ उठी तब-तब राजा का आदेश हुआ कि ये जुबानें काट दी जायें, सर को धङ से अलग कर दिया जाये, और सारी आवज़ें दबा दी गयीं।
पर उस उपरवाले की धैर्य की दाद देनी पङेगी जिसकी बनाई हुई कठपुतलीयाँ उसी के नाम पर आपस में लङ-मर रही हैं, जिसकी पूजा कर रही हैं उसी को गालियाँ दे रही हैं, पर वो न तो कोई धमकी देता है न हि कोई आदेश और ये तो वो खुद हि जाने कि ये उसकी कमज़ोरी है या उसकी ताकत!!
हालाँकि कुछ समझदार कठपुतलियों ने ऐसी कठपुतलियाँ बनाई जो सिर्फ काम करती हैं जिन्हें अच्छा या बुरा नहीं पता जिस कारण वे बगावत भी नहीं करतीं, करती हैं तो सिर्फ दिये हुए आदेश का पालन और ऐसी कठपुतलियों को नाम दिया गया है रोबोट!!
जबकी दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले रजनीकांत जी ने अपने एक सिनेमा में रोबोट का निर्माण करते समय उसमें भावनाओं वाली चिप लगा दी और परिणामस्वरूप रोबोट का विद्रोह हुआ जिसपर पूरा सिनेमा बना दिया है। क्या पता उस अकेले दूरदर्शी ने भविष्य देख लिया हो!!
जिस तरह मैंने देख लिया था यह भविष्य अपने बचपन में, दरअसल दादीजी जिन पंक्तियों को हमसे दोहराने की बात करती थीं, उसे हम नसमझी में ही सही पर यूँ दोहराते थे मानो हमने आने वाला कल देख रखा है :- 
   "दीन बंधु दीनानाथ, तेरी डोरी मेरे हाथ" 
धन्य हो दीनानाथ, अब तो कुछ बोलो!!

- प्रद्युम्न पालीवाल 

Thursday, 8 March 2018

२.नया जीवन!!

नया जीवन


Photo Credit :- Prafful Bhargava (प्रफुल्ल भार्गव)




सरिता का उद्गम,
कल-कल कल-कल बहते जाना,
पत्थरों से टकराकर,
प्रतीत होता है उसका घायल होना,
दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे,
रास्ते के मोड़ संग चलना,
चाहती तो सीधी जाती पर,
आता है प्रकृति के कायदों को बनाए रखना,
पाप धोने का कर्म करती है,
फिर शायद खुद उस पाप की अग्नि में जलते रहना,
हो सकता है वो जलना भी जरूरी हो,
क्योंकि चाहती है वो सबको पुण्य प्रदान करना,
अस्थियाँ भी समाहित हैं उसमें,
सब जो चाहते हैं मोक्ष को पाना,
और न जाने क्या क्या व्यथाएँ होंगी,
कहाँ कुछ कहती है,
बस कल-कल कल-कल बहती है,
पहुँचना चाहती है उस पड़ाव पर,
जहाँ किसी की जरुरत है अब,
तो क्षीरधि में प्रवाहित होते हुए,
वह प्रसन्नता से फूली नहीं समाती,
पता है क्यों??

तुम शायद समझे नहीं अभी,
सरिता और क्षीरधि मित्र थे कभी।।



मैं उस नदी सा बनना चाहता हूँ,
पहाड़ों के मोड़ों संग बहना चाहता हूँ,
पत्थरों से टकराकर मज़बूत होना चाहता हूँ,
ख़ुद पाप की ज्वाला में जलना चाहता हूँ,
पुण्य प्रदान कर सबके पाप धोना चाहता हूँ,
मैं मोक्ष तो नहीं दे सकता पर सबकी मदद करना चाहता हूँ,
बिना रुके अंतिम पड़ाव तक बहना चाहता हूँ,
उस पड़ाव पर जहाँ मेरा पुनर्जन्म होगा,
जो मुझे खुदमें प्रवाहित करा ले,
अपार प्रसन्नता मुझमें भर दे,
लोभ, मोह, काम, क्रोध, द्वेष से दूर कर दे,
बस ऐसा इक क्षीरधि सा मित्र चाहता हूँ।।
वही होगा मेरे इस जीवन का आखिरी पड़ाव,

या यूँ कहो, मेरे नए जीवन की शुरुआत,
कभी न बिछड़ने वाले दोस्त के साथ।।


- प्रद्युम्न पालीवाल


Wednesday, 7 March 2018

1. अकेला चना !!

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता


Photo Credit :- Prafful Bhargava (प्रफुल्ल भार्गव)



जब मैं अकेला होता हूँ, तब अकेलेपन के एहसास के बारे में सोचता हूँ। अकेले कोई क्या कर सकता है, शायद कुछ नहीं क्योंकि मैंने कहीं सुना है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। मैं अकेले सोचता हूँ और बस सोचता जाता हूँ ,
किसीको हँसाना दुनिया का बेहद कठिन कार्य है, पर वो छोटे कद का, छोटी मूँछ रखने वाला, जो सर पर टोपी ओढ़ता था और हाथ में छड़ी लेकर घूमता था, अरे वही 'चार्ली चैपलिन', अकेले बिना बोले दुनिया का सबसे मुश्किल काम पल में कर देता था, और लोग भी थे कि हँसी के मारे रोने लगते थे।
फिर एक वो, हाथ में कुदाली, फावड़ा, तसला और गैंती लिए अपनी जोरू की मौत का बदला प्रशासन या व्यवस्था से न लेते हुए, पहाड़ तोड़ने लगता है, हाँ वही बिहार का दशरथ माँझी, यार अकेले पहाड़ तोड़ कर रास्ता बना देता है। 
पौराणिक कथाओं को दूर भी रखा जाये तो आज के समय के मनुष्यों (पुरुषों एवं महिलाओं) की एक लंबी सी कतार आती है जो अकेले दुनिया बदल गए/रहे हैं।
मनुष्यों को हटाया जाए तो चींटी एक ऐसा जीव, जिसके बारे में सुनने को मिलता है कि खुद के भार से पचास गुना ज्यादा भार उठाने की क्षमता रखती है।
ये कुछ इस तरह समझिये कि एक पचास किलो का मध्यम वर्ग का व्यक्ति, थोड़ी सी मशक्कत के बाद अपने एक घर, एक कार, दो युवा बच्चे, एक बीवी, और एक माँ को अपने कंधों पर लिए इस रोज़मर्रा की अनंत दौड़ में आगे निकलने को बढ़ता जा रहा है, नश्वरता की ओर। 
इस व्यक्ति को मैं अपना पिता कहने से हिचकिचाऊंगा नहीं।

"और तब इस ब्रम्हांड को देख मुझे लगता है, कि ये मुग़ालता पाले हुए हैं हम, कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।"
 जाओ कुछ करो!!


 - प्रद्युम्न पालीवाल