Search This Blog

Wednesday, 7 March 2018

1. अकेला चना !!

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता


Photo Credit :- Prafful Bhargava (प्रफुल्ल भार्गव)



जब मैं अकेला होता हूँ, तब अकेलेपन के एहसास के बारे में सोचता हूँ। अकेले कोई क्या कर सकता है, शायद कुछ नहीं क्योंकि मैंने कहीं सुना है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। मैं अकेले सोचता हूँ और बस सोचता जाता हूँ ,
किसीको हँसाना दुनिया का बेहद कठिन कार्य है, पर वो छोटे कद का, छोटी मूँछ रखने वाला, जो सर पर टोपी ओढ़ता था और हाथ में छड़ी लेकर घूमता था, अरे वही 'चार्ली चैपलिन', अकेले बिना बोले दुनिया का सबसे मुश्किल काम पल में कर देता था, और लोग भी थे कि हँसी के मारे रोने लगते थे।
फिर एक वो, हाथ में कुदाली, फावड़ा, तसला और गैंती लिए अपनी जोरू की मौत का बदला प्रशासन या व्यवस्था से न लेते हुए, पहाड़ तोड़ने लगता है, हाँ वही बिहार का दशरथ माँझी, यार अकेले पहाड़ तोड़ कर रास्ता बना देता है। 
पौराणिक कथाओं को दूर भी रखा जाये तो आज के समय के मनुष्यों (पुरुषों एवं महिलाओं) की एक लंबी सी कतार आती है जो अकेले दुनिया बदल गए/रहे हैं।
मनुष्यों को हटाया जाए तो चींटी एक ऐसा जीव, जिसके बारे में सुनने को मिलता है कि खुद के भार से पचास गुना ज्यादा भार उठाने की क्षमता रखती है।
ये कुछ इस तरह समझिये कि एक पचास किलो का मध्यम वर्ग का व्यक्ति, थोड़ी सी मशक्कत के बाद अपने एक घर, एक कार, दो युवा बच्चे, एक बीवी, और एक माँ को अपने कंधों पर लिए इस रोज़मर्रा की अनंत दौड़ में आगे निकलने को बढ़ता जा रहा है, नश्वरता की ओर। 
इस व्यक्ति को मैं अपना पिता कहने से हिचकिचाऊंगा नहीं।

"और तब इस ब्रम्हांड को देख मुझे लगता है, कि ये मुग़ालता पाले हुए हैं हम, कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।"
 जाओ कुछ करो!!


 - प्रद्युम्न पालीवाल

6 comments:

  1. बहुत अच्छे चित्र और बहुत ही सुन्दर उन चित्रों पर शब्दों का चित्रांकन... बहुत खूब प्रद्युम्न 👏👏👏👏👏

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छे चित्र और बहुत ही सुन्दर उन चित्रों पर शब्दों का चित्रांकन... बहुत खूब प्रद्युम्न 👏👏👏👏👏

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर!! एक नयी पहल है, आप बेहतर करने बावत जो हो सके वो सब बताएं, मैं पूरी मेहनत करूँगा सर इसके लिए😊😊😇

      Delete