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Thursday, 8 March 2018

२.नया जीवन!!

नया जीवन


Photo Credit :- Prafful Bhargava (प्रफुल्ल भार्गव)




सरिता का उद्गम,
कल-कल कल-कल बहते जाना,
पत्थरों से टकराकर,
प्रतीत होता है उसका घायल होना,
दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे,
रास्ते के मोड़ संग चलना,
चाहती तो सीधी जाती पर,
आता है प्रकृति के कायदों को बनाए रखना,
पाप धोने का कर्म करती है,
फिर शायद खुद उस पाप की अग्नि में जलते रहना,
हो सकता है वो जलना भी जरूरी हो,
क्योंकि चाहती है वो सबको पुण्य प्रदान करना,
अस्थियाँ भी समाहित हैं उसमें,
सब जो चाहते हैं मोक्ष को पाना,
और न जाने क्या क्या व्यथाएँ होंगी,
कहाँ कुछ कहती है,
बस कल-कल कल-कल बहती है,
पहुँचना चाहती है उस पड़ाव पर,
जहाँ किसी की जरुरत है अब,
तो क्षीरधि में प्रवाहित होते हुए,
वह प्रसन्नता से फूली नहीं समाती,
पता है क्यों??

तुम शायद समझे नहीं अभी,
सरिता और क्षीरधि मित्र थे कभी।।



मैं उस नदी सा बनना चाहता हूँ,
पहाड़ों के मोड़ों संग बहना चाहता हूँ,
पत्थरों से टकराकर मज़बूत होना चाहता हूँ,
ख़ुद पाप की ज्वाला में जलना चाहता हूँ,
पुण्य प्रदान कर सबके पाप धोना चाहता हूँ,
मैं मोक्ष तो नहीं दे सकता पर सबकी मदद करना चाहता हूँ,
बिना रुके अंतिम पड़ाव तक बहना चाहता हूँ,
उस पड़ाव पर जहाँ मेरा पुनर्जन्म होगा,
जो मुझे खुदमें प्रवाहित करा ले,
अपार प्रसन्नता मुझमें भर दे,
लोभ, मोह, काम, क्रोध, द्वेष से दूर कर दे,
बस ऐसा इक क्षीरधि सा मित्र चाहता हूँ।।
वही होगा मेरे इस जीवन का आखिरी पड़ाव,

या यूँ कहो, मेरे नए जीवन की शुरुआत,
कभी न बिछड़ने वाले दोस्त के साथ।।


- प्रद्युम्न पालीवाल


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