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Monday, 19 March 2018

6. ऊँचाई


ऊँचाई



Photo Credit :- Prafful Bhargava 

(प्रफुल्ल भार्गव)


ऊँचाई, कई लोगों को देखा है मैंने जिन्हे ‘ACROPHOBIA’ है यानी ऊँचाई से डर लगता है पर फकत ये अर्थ नहीं है ऊँचाई का। जिस ऊँचाई का मैं आपसे ज़िक्र करना चाहता हूँ कम्बखत उस ऊँचाई से किसीको डर नहीं लगता परन्तु सबको अत्यंत प्रिय है, मुझसे आज तक ऐसे व्यक्तित्व का सामना नहीं हुआ जिसे वो तथकथित ऊँचाई नहीं चाहिये।

तथकथित ऊँचाई को सिर्फ मान सम्मान तक सीमित न रखा जाये अन्यथा ये ऊँचाई का अपमान होगा और इस दौर में कोई भी अपमानित शख़्स ऊँचाई का प्रतिनिधित्व करते हुए आप और मुझ पर मानहानि का मुकदमा ठोक सकता है!! दरअसल इस ऊँचाई से अभिप्राय दौलत, शौहरत और ओहदा जैसी सांसारिक उपलब्धियों से भी है!!

चुंकि हम मनुष्य हैं तो यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है कि हम ऊँचाई से न डरें, पर कुछ चीज़ें ज़मीन पर अच्छी लगती हैं इस बात को भी नहीं भूलना चाहिये। साग़र आज़मी का एक शेर है,
शोहरत की फ़ज़ाओं में इतना न उड़ो 'साग़र'
 परवाज़ न खो जाए इन ऊँची उड़ानों में॥

उङान भरना गलत नहीं है और न ही होगा पर ये भी सही तभी तक है जब तक वो उङान (आकाशीय अश्वमेघ की अद्वितीय नायिका, करोड़ों भारत-पुत्रियों के मन-मस्तिष्क में कल्पना-जडित, हौसले भरी उड़ान का स्वप्न जगाने वाली, गीता की कर्मशील पाठिका, हमारे युग को साहस की भारतीय व्याख्या देने वाली) कल्पना चावला की उङान हो या वो उङान जो (अपने शोध-क्षेत्र अनंत-आकाशकी प्रयोगशाला के लिए ईश्वर के सर्वाधिक प्रिय शोधार्थी) स्टीफ़्न ह्वाकिंग्स ने भरी और इन उङानों पर हमें गर्व होना चाहिए।

उङान या ऊँचाई कमाई जाती हैं जिसके लिये डॉ कुंवर बैचैन कह गये हैं कि,
उस ने फेंका मुझ पे पत्थर और मैं पानी की तरह,
 और ऊँचा और ऊँचा और ऊँचा हो गया॥

इस ऊँचाई को कई लोग बड़प्पन कह कर टाल देते हैं कई लोग गालियां भी देते हैं पर याद रखिये कि कहा जा चुका है कि माफ करने वाला बड़ा होता है।

और ये वो ज़माना है जहाँ कुकर्म किये बिना कोई उङान भरे तो वह खुद अचम्भित हो जाता है कि यह हुआ कैसे, और जो उसे जानने वाले लोग हैं वे भी यही चाहते हैं कि इतने गलत काम करता है ये उङान जरुर भरे बस दोनों उङानों में अंतर होता है।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर किसीकी तरक्की से कोई दिक्कत नहीं है, सिर्फ मैं हि नहीं आप भी सभी के सामने यही कहते हैं और आप मानें या न मानें यह एक सफ़ेद झूठ है। जिस दिन यह झूठ सच हो जाएगा आप खुद-ब-खुद
ऊँचे हो जाएंगे।

मेरा विचार फ़कत यही है कि
सब जायज़ है शोहरत की ज़द को,
इस छोटी सोच की ऊँचाई पे आदम है!!

क्योंकि यदि सब जायज़ हो गया तो आप और मैं ज़िंदा रहैं ये भी जरूरी नहीं है, और आप खुद की नज़र में ऊँचे होना चाहिए वरन इस दुनिया ने तो सीता से भी अग्निपरीक्षा मांगने के बाद उसे बद्नाम कर दिया था
देखो,
मेहनत में चप्पल क्या, बदन तक घिस डाला,
यार हमारे तो घर की भी ऊँचाई कम है!!

पर मैं जब ज़मीर की ऊँचाई देखता हूँ तो मेरा कद बहुत ऊँचा दिखता है मुझे और यही होना भी चाहिए
 दौलत, शोहरत की ऊँचाई से कहीं आवश्यक है आपके ज़मीर की ऊँचाई॥

-प्रद्युम्न पालीवाल